ए शाम तू भी गजब बोलती है,
कभी कोई बीमारी तो कभी सुबह के राज खोलती है।
तेरे तरीके मुझे अपने ही लगते है,
कुछ न कहकर भी तेरे कितने चर्चे है।
सामने तेरे सभी झुकते है,
कई रात के इंतजार में तो कई दिन के बुखार में।
घमंड नहीं तुझे तेरे फैलाए सुकून का,
चली जाती है बस्ता लेकर सारे जहान का।
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दर्शिनी ओझाArticle Categories:
Literature