मेरा किया धरा फ़िज़ूल हैं क्या?
मेरे सजदों में कोई भूल हैं क्या?
देखते हैं, देखते ही नोच लेते हैं,
बाग में हरा कोई फूल हैं क्या?
तू जो हैं, जैसा हैं, कुबूल हैं सब,
तुझे तेरा दिवाना कुबूल हैं क्या?
जिंदगी के लिए तेरी, मैं अपनी,
जिंदगी लूटा दूं, वसूल हैं क्या?
तेरा अक्ष धुंधला दिखाई दे रहा,
इस आयने में जमी धूल हैं क्या?
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अक्षय धामेचाArticle Categories:
Literature