अक्सर तुम्हें खोने के ख़्याल से इतना डर जाती हूं मैं,
लिपट कर तुम्हारी यादों से गहरी नींद सो जाती हूं मैं,
नकाबपोश चांद छिपा हो जैसे बादलों के पीछे,
जहन में बिठा के तुम्हारा यह ख़्याल खो जाती हूं मैं,
तुने खोली ही नहीं वो किताब जहां ज़िक्र था हमारा
हर पन्ने पे पढ़कर तेरा नाम आज भी रो जाती हूं मैं,
सिलवटें जाने कैसी है किस्मत की बदन पे मेरी,
जो पहना नहीं कभी वो लिबास-ए-जहन धो जाती हूं मैं,
कोई छीन ना ले तुम्हें ख़्याल-ए-मोहब्बत से मेरी,
तकिए पर रख के तेरा ख़्वाब अक्सर रो जाती हूं मैं,
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नीता कंसाराArticle Categories:
Literature