ढल गई फिर शाम देखो ढह गया दिन भूल जाती है सुबह, सुबह निकलकर और […]
डालियों के द्वंद में रोया हुआ पंछी, कोपलों के आगमन पर क्रुद्ध होता है। एक […]
तन नौका में सवार मन की मनमानी में। स्वप्न हो गये नाविक जीवन के पानी […]
दीप बेचारा बुझा क्या सब पतंगे उड़ गए। अब अँधेरे के नगर में बातियों की […]
अभिलाषाओं के दिवास्वप्न पलकों पर बोझ हुए जाते फिर भी जीवन के चौसर पर साँसों […]