तसव्वुर के सहारे यूँ शब–ए–ग़म ख़त्म की मैं ने जहाँ दिल की ख़लिश उभरी तुम्हें […]
वक़्त जब करवटें बदलता है फ़ितना-ए-हश्र साथ चलता है मौज-ए-ग़म से ही दिल बहलता है […]
उम्र गुज़री है इल्तिजा करते क़िस्सा-ए-ग़म लब-आशना करते जीने वाले तेरे बग़ैर ऐ दोस्त मर […]
मुद्दतों से कोई पैग़ाम नहीं आता है जज़्बा-ए-दिल भी मेरे काम नहीं आता है है […]
लब पे काँटों के है फ़रियाद-ओ-बुका मेरे बाद कोई आया ही नहीं आबला-पा मेरे बाद […]
हर साँस में ख़ुद अपने न होने का गुमाँ था वो सामने आए तो मुझे […]