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अगर अल्बम नहीं होते।

अगर ये ग़म नहीं होते,
तो अब तक हम नहीं होते।

मुसाफ़िरख़ाने सा है दिल,
मुसाफ़िर कम नहीं होते।

उन्हीं पाज़ेब की गूंजे,
सितम क्यों कम नहीं होते?

भरे जा सकते है सब ज़ख़्म,
सही मरहम नहीं होते।

ये ग़म कपड़े बदलते है,
कभी पैहम नहीं होते।

जहाँ पर भीड़ होती है,
वहाँ मातम नहीं होते।

वहाँ की नींद अच्छी है,
जहाँ ये दम नहीं होते।

ख़ुदा नीचे ही रहता गर,
बंदूक ओ बम नहीं होते।

अचल यादें कहां जाती?
अगर अल्बम नहीं होते।

ध्रुव पटेल

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