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अहमदाबाद के मेड-टेक स्टार्टअप ने सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए एक नया दृष्टिकोण विकसित किया जिसे भारत में सीडीएससीओ की मंजूरी हासिल

आयोटा डायग्नोस्टिक, अहमदाबाद के बायो-सैंपलिंग समाधान में एक अग्रणी मेड-टेक स्टार्टअप, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा अपने अभूतपूर्व एम-स्ट्रिप डिवाइस की हालिया मंजूरी के साथ गर्व से भारत में एक महत्वपूर्ण सिद्धी हासिल की है। एम-स्ट्रिप, सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए एक स्वदेशी रूप से निर्मित नवीन शोध है। जीससे महिलाऐ अपने घर में और गोपनीयता रखकर सेल्फ सेम्पलिंग कर खुद को सुरक्षित चिह्नित करने का अधिकार देती है। मासिक धर्म के रक्त का उपयोग करके सर्वाईकल कैंसर की जांच के लिए यह क्रांतिकारी शोध डॉ. सोमेश चंद्रा द्वारा परिकल्पित एक अध्ययन का अनुसरण करती है। जिसे उत्तर पश्चिम भारत की एक अग्रणी डायग्नोस्टिक चेईन स्टर्लिंग एक्यूरिस के सहयोग से किया गया था। यह वास्तव में सर्वाइकल कैंसर की जांच को लाभार्थियों के घर तक पहुंचाने और सर्वाइकल कैंसर को नियंत्रित करने के लिए स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में व्यापक भागीदारी की दिशा में एक कदम है।

 

 

आयोटा डायग्नोस्टिक के संस्थापक श्री वैभव शितोळे, अहमदाबाद के प्रसिद्ध ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. सोमेश चंद्रा और स्टर्लिंग एक्यूरिस के श्री राजीव शर्मा एम-स्ट्रिप डिवाइस के पेटेंट के आविष्कारक और सह-फाइलर हैं। हाल ही में, कंपनी को भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा यह डिवाइस के लिए डिज़ाइन पेटेंट को भी मंजूरी प्रदान कि गई है।

 

 

आयोटा डायग्नोस्टिक के संस्थापक श्री वैभव शितोळे ने इस ऐतिहासिक पहल पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘सीडीएससीओ द्वारा एम-स्ट्रिप को मंजूरी देना आयोटा डायग्नोस्टिक के लिए एक प्रमुख मील का पत्थर है और महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण छलांग का प्रतिनिधित्व करता है। खासकर शुरुआती जांच और सर्वाइकल कैंसर, एसटीआई की जांचमें। यह तकनीक ड्युअल ईनोवेशन का परिचय देती है। सबसे पहले, निदान पद्धति में एम-स्ट्रिप हमारे स्वामित्व सामग्री के माध्यम से मासिक धर्म के रक्त के विशिष्ट गुणों और सूखे मैट्रिक्स से लाभ उठाता है, जिससे नैदानिक परीक्षणों के लिए विस्तारित अवधि के लिए नमूना संग्रह और संरक्षण की अनुमति मिलती है। दूसरी बात डिवाइस की डिजाईन में भी ईनोवेश देखने मिलता है। महिलाओं को कम्फर्ट झोनमें सेल्फ-सेम्पलिंग की सुविधा प्रदान करता है और ठंडे वातावरण और परिवहन की परेशानी से भी मुक्त करता है। परिणाम स्वरूप, यह नया दृष्टिकोण शहरी क्षेत्रों और दूरदराज के स्थानों में रोगियों के लिए सेम्प्लिंग की लागत को काफी कम कर देता है। जबकि कुशल चिकित्सा पेशेवरों और महंगे लेबोरेटरी सेटअपकी आवश्यकता को भी समाप्त कर देता है।

 

 

एम-स्ट्रिप, सूखे रक्त कोशिका मैट्रिक्स पर आधारित एक नवीन तकनीक है, जो महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए जैव-नमूना समाधान में एक बड़ी छलांग का प्रतीक है। मासिक धर्म द्रव की शक्ति का उपयोग करके, एम-स्ट्रिप महिलाओं को अद्वितीय गोपनीयता के साथ सशक्त बनाता है और सामाजिक वर्जनाओं को संबोधित करता है, जिससे उनके घर पर आराम से ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) और अन्य संक्रामक रोगों का आसानी से पता कर सकेगी।

 

सर्वाइकल कैंसर की जांच के मौजूदा तरीकों में पैप स्मीयर माइक्रोस्कोपी, विझ्युअल ईन्स्पेक्शन और डीएनए परीक्षण शामिल हैं। हालाँकि, पैप स्मीयर और साइटोलॉजी जैसी पारंपरिक स्क्रीनिंग तकनीकों में अक्सर शुरुआती चरणों में बीमारियों का पता लगाने में संवेदनशीलता की कमी होती है। इसके अलावा, अधिकांश निदान मुख्य रूप से अस्पतालमें कुशल चिकित्सा पेशेवरों द्वारा सर्वाईकल स्वाब कलेक्शन पर निर्भर करते हैं। यह प्रक्रिया अक्सर महिलाओं के लिए असुविधाजनक और दर्दनाक होती है, जिसके कारण कई महिलाएं नियमित जांच से बचती हैं। ईसके अलावा सोशियल टेबू महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर की जांच कराने से रोकती हैं। जिससे समय के साथ अनजाने में सर्वाइकल कैंसर विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। सैनिटरी पैड में एकीकृत एम-स्ट्रिप मासिक धर्म के दौरान एक गैर-आक्रामक विकल्प प्रदान करता है, जिससे बिना किसी परेशानी के नमूना संग्रह करने और उन्हें प्रयोगशाला विश्लेषण के लिए भेजने की अनुमति मिलती है।

 

ऐसे देश में जहां केवल 2% महिलाओं ने सर्वाइकल कैंसर की जांच कराई है, एचपीवी प्रसार के आंकड़े एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित महिलाओं में, एचपीवी की दर आश्चर्यजनक रूप से 88-97% तक बढ़ जाती है, जबकि स्त्री रोग संबंधी रुग्णता के बिना महिलाओं में एचपीवी का प्रसार 10-37% तक होता है। सालाना 1,23,907 नए मामले और 77,348 मौतों रीपोर्ट हुई है। भारत में 15-44 वर्ष की आयु की महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर दूसरा सबसे आम कैंसर है।

 

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 25-65 वर्ष की आयु की महिलाओं में कैंसर के पूर्वे पता लगाने के लिए नियमित जांच की वकालत करता है। हालाँकि, भारत जैसे देशों में संसाधन की कमी के कारण वैकल्पिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जैसे कि 30 वर्ष की आयु के बाद कम से कम दो आजीवन स्क्रीनिंग उच्च प्रदर्शन एचपीवी डीएनए परीक्षण का उपयोग करके और 10 साल के स्क्रीनिंग अंतराल के साथ करना चाहिऐ। देरी से निदान अक्सर उन्नत चरण की बीमारी का कारण बनता है, जिसके परिणामस्वरूप महंगा उपचार, खराब पूर्वानुमान और अंततः उच्च मृत्यु दर होती है।

 

 

एम-स्ट्रिप दो प्रमुख तरीकों से सर्वाइकल कैंसर की जांच को महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाता है। सबसे पहले यह आसान, सुविधाजनक और स्व-सशक्त नमूना संग्रह की सुविधा प्रदान करता है। दूसरे, यह एचपीवी-डीएनए परीक्षण को प्राथमिक और पसंदीदा स्क्रीनिंग विधि के रूप में उपयोग करके डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के अनुरूप है। प्रयोगशाला विश्लेषण के लिए सूखे मासिक धर्म के रक्त के गैर-आक्रामक संग्रह, भंडारण और परिवहन के लिए डिज़ाइन किया गया यह स्व-नमूनाकरण के विचार के अनुरूप भी है जिसे हाल ही में यूएस एफडीए द्वारा अनुमोदित किया गया था। गोपनीयता, सुविधा और गैर-आक्रामकता को प्राथमिकता देकर, यह शीघ्र जांच को प्रोत्साहित करता है, रोग का शीघ्र पता लगाने और मृत्यु दर को कम करने की सुविधा देता है, विशेष रूप से सीमित स्वास्थ्य देखभाल पहुंच वाले अल्प-सेवा वाले ग्रामीण क्षेत्रों में।

 

यह उपलब्धि ग्लोबल बायो-इंडिया 2023 में आयोटा डायग्नोस्टिक की केंद्रीय पेटेंट तकनीक, आयोटा बायोसैंपलर के सफल लॉन्च के बाद मिली है। इस उपकरण को तब और अधिक पहचान मिली जब गुजरात में प्री-वाइब्रेंट बायोटेक्नोलॉजी शिखर सम्मेलन में गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल द्वारा इसका अनावरण किया गया। बीआईआरएसी-डीबीटी, सृष्टि इनोवेशन, एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, आई-हब गुजरात और एसटीबीआई-वडोदरा द्वारा समर्थित, आयोटा डायग्नोस्टिक का अनुमान है कि एम-स्ट्रिप सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए प्रभावी लागत वंचित क्षेत्रों में महिलाओं के लिए पहुंच बढ़ाएगी।

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