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आवारा शायर सा…

मै किसी आवारा शायर सा,
वो बहकी हुई किसी ग़ज़ल सी

मै तसव्वुर में खोया हुआ किसी लम्हे सा,
वो हाथ में दबी किसी रेत सी

मै सहरा सा तपता हुआ दिल,
वो ठंडी बारिश की बूंदों सी

मै बिखरे हुए ख़्वाब सा,
वो मुकम्मल कोई ज़िन्दगी सी

मै कागज़ की किसी कश्ती सा,
वो सियाही में घुले हुए कोई जज़्बातों सी

आलोक सावलिया ‘अतीत’

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