जी रहा हूं उनके होने की राहत में,
जो मेरा हैं उन्हें देखने की चाहत में।
शुरू उन से ख़तम उन से दिन रात,
शाम ओ सुबह गुजरती इबादत में।
पहले अच्छी आदत लगी थी उनकी,
फिर गुजरे दिन मेरे बुरी आदत में।
उनके नाम से ऐसा सुकून मिलता है,
जैसा मिलता है पढ़कर आयत में।
बेखबर इतने साल गुजारे तलप में,
बेखबर इतने साल गुजरे चाहत में।
अक्ष वो मिले तो सारी दुनिया मिली,
कोई कमी नहीं ईश की इनायत में।
अक्षय धामेचा