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कविता

ठहरे ठहरे कदम हमारे, डगमगाती राह में।

महके महके फूल हैं, पतझड़ की बहार में।

हजार दुश्मन हैं खड़े, ज़िन्दगी के हर मोड़ पर।

दुश्मनी भी देखी है हमने, दोस्ती की आड़ में।

कौन जान पाएगा, इस वक्त की रफ्तार को।

चमचमाती चांदनी है, इस अंधेरी रात में।

यह अंधेरी रात जिस दिन, नया सवेरा लाएगी।

खिलखिलाते होंठ होंगे, दर्द भरी मुस्कान में।

ज़िन्दगी गुमसुम पड़ी है, खुशियों की बौछार में।

अब मौत भी देखेंगे हम, जीवन की उड़ान में।

 

 

 

देवेन्द्र देव सुमन

 

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