इक दफा दिन में रात हुई थी,
ख्वाहिशें सारी खाक हुई थी।
तब जा कर कुछ चैन पाया था,
कोशिशें भी तो लाख हुई थी।
आसू उनके सूख गए थे जब,
आंख मेरी भी लाल हुई थी।
यूं बिछड़ना कहीं लिखा होगा,
मिलने की जो बात हुई थी।
मौत आने का सोक क्यों हो अक्ष?
ज़िन्दगी खुद ही राख हुई थी।
अक्षय धामेचा