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घर जाना है

सोचा आज भी “मर जाना है”
लेकिन बेटीं हैं, घर जाना है

सालों से ये नहीं सूना है
“कब तक! और किधर जाना है?”

तेरे हाथों में आ जाने को
सब फूलों को कतर जाना है

पहले चलना तूफानों पे है
फिर दरिया में ठहर जाना है

रुकना सिर्फ उदासी को है
सुख का सच्चा हुनर “जाना है”

मैं जो आया हूं तेरे पास
उसका नाम गुज़र जाना है

आँखो पे हैं पलक का कहना
इनका काम ही भर जाना है

खुद से तंग आ कर मैं बोला
जा निकल जा जिधर जाना है

ध्रुव पटेल

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