दरअसल
मसला यह था की
इक मुद्दत से
मैंने समेटे रखा था ख़ुद को,
और मैं उड़ना चाहती थी,
बहुत दूर तलक
तुम्हारे आसमान में
तुम्हारे साथ…
पर किस्मत देखो
कभी पतंग ना था पास,
तो कभी तुम्हारे तलक पहुंच सके
इतनी डोर ना थी,
कभी वो छत ना मिली जहां से
पहुंच सकती तुम्हारे पास
और इस बार …
पतंग है, डोर है, साथ में मांजा भी
और हाँ छत भी है पर,
वो हवा नहीं…
जो मुझे तुम तक पहुंचा सके !!!
तुम्हारे साथ…
