वो पत्थर है या जो भी है
आंखो में इक दरिया भी है
उसके होने से लगता है
पाया भी, कुछ खोया भी है
ये जो दिन भर हँसता है ना
पूरी रातें रोया भी है
धोखा क्या है? उसका मतलब
इस दुनिया से जाना भी है
भूखा नंगा बच्चा सोचे
उसके दर पर कपड़ा भी है!?
कैद छूटा इक पंछी सोचे
अच्छा, मुजको उड़ना भी है?
छोड़ दिया, तो सब कहते है
मैं कहता हूं हारा भी है
मेरी बात सुनी हो उसने
ऐसा कोई किस्सा भी है?!
औरो के घर बेटी होगी
मेरे घर तो शाहजादी है
उसने ऐसे देखा मुझको
भूल गया के बचना भी है
उसके दिल में दो बाज़ू है,
दरिया भी है सहरा भी है
उसको कैसे चांद कहूं में,
नूर ए चांद तो ढलता भी है
चुप बैठा है वो जो सागर
शोर वहां से उठता भी है
खैर अभी तो भूल चुका हूं
भूल चुका वो शिकवा भी है
मेरी ग़ज़लें, ग़ज़लें नइ है
उसमे तो इक इंसा भी है
ध्रुव पटेल