बस अभी अभी ही तो दुनिया देखने की हिम्मत की थी,
नाजुक से दिल को अभी टूटने की आदत भी नहीं थी..!
इस लंबे सफ़र की ओर सबको अपना मान के चली थी,
साथ तभी छूटा, जब पास मेरे सिर्फ़ मुश्किल की घड़ी थी..!
दुनिया के गफ़लो में फ़सती रही, सुज़बुज़ अब ना दिन-रात की थी,
चलता रहा समय, पता नहीं उसे जल्दी किस बात की थी..!
हार के गिरना, गिर के उठना, लगता हे जिंदगी अब ऎसी ही थी,
दर्द क्या बाँटेगे किसी के साथ, हमारी कहानी यहा पुरानी सी थी..!
फ़िर भी ये ख्वाहिशे हमारी खतम कहा हुइ थी,
हर रास्ते के अंत मे एक नइ शुरुआत जो हुई थी..!
हेतल शाह