Nov 18, 2020
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ना आया

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खुदा मुझे दुनिया में जीने के सलीका ना आया !
दुनिया के तोर तरीके की किताब पढ़ना ना आया !

मेरे लिए मोहब्बत रेगिस्तान में पानी की तलाश रही !
किसी के दिल में ज़रा सी जग़ह बनाना ना आया !

सोचता हूँ क्या रह जाएगा मेरे नाम का मेरे बाद,
मुझे तो कही भी अपना नाम लिखना ना आया !

नहीं उम्मीद की याद करेगा कोई मेरी रुखसती बाद
जीते जी रिश्ते, दोस्ती, ताल्लुक़ निभाना ना आया !

जितना जिया घुटन के साथ मरता हुआ जिया हू,
कभी खुशी को साँसो में पिरोने का तरीका ना आया !

अब कहानी का अंजाम जल्द आये ये दुआ है,
दूसरी कोई दुआ खुद के लिए करने का बहाना ना आया !

बंजारों सी फ़ितरत  रही, भटकता रहा इधर उधर,
इतनी ग़ुरबत रही की खुदका ठिकाना बनाना ना आया !

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Literature

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