आज किताब से मेरे पुराना गुलाब निकला,
जैसे मोहब्बत का इक अधूरा हिसाब निकला,
महक गई फिज़ा फ़िर वही मोहब्ब्त से,
जैसे पुरानी बोतल से नया शराब निकला,
कांटों से बचा के रखा था कभी सम्भाल के,
मेरे गुलएइश्क़ का मौसम खराब निकला,
बंद किताबों के गुलिस्तां कहां बोल पाते है,
सूखे पत्ते के भेष में सूखा इक ख़्वाब निकला,
लौट आओ ,मनाए हम भी दिन ये गुलाब का,
मेरे दिल से ये अरमान बेहिसाब निकला,
आज किताब से मेरे पुराना गुलाब निकला,
जैसे मोहब्बत का इक अधूरा हिसाब निकला,
नीता कंसारा