Feb 20, 2021
576 Views
0 0

वक्त

Written by

वक्त हमारे साथ जैसे रुक चुका है,
हमें थकाने में खुद ही थक चुका है।

हाथ की लकीरों में क्या ढूंढ़ते हो?
नाम हमारा पहले से जुड़ चुका है।

हम बिक जाए ये लाज़मी तो नहीं,
बिकाने वाला मुफ्त में बिक चुका है।

तभी कद्र नहीं जब होनी चाहिए थी,
उसकी छांव में बैठे हो सूख चुका है।

हमारे लिए हरेक रास्ता बंद पड़ा है,
हमारे लिए हरेक रास्ता खुल चुका है।

अंधेरे का इल्म ना रहा अक्ष तुम को,
जीवंत दिया तो कब का बुज चुका है।

अक्षय धामेचा

Article Tags:
Article Categories:
Literature

Leave a Reply