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वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ़ डिज़ाइन ने छह महिला डिज़ाइनरों को पहले सृजन शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया

विश्व महिला दिवस के पहले, सोनीपत के वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ़ डिज़ाइन ने रचनात्मक क्षेत्र से जुड़ी छह महिला डिज़ाइनरों को उनके योगदान के लिए सम्मानित करते हुए पहला सृजन शक्ति पुरस्कार प्रदान किया है। पुरस्कार जीतने वाली इन महिलाओं में इंजीनियरिंग सर्विस कंपनी, इनसेडो की शांभवी गुप्ता; बहु-उपयोगी स्टूडियो, विदइन की सोनल तुली; अनहद की फाउंडर डायरेक्टर और एक्सेंचर की सीनियर मैनेजर, जया कंवर; डिज़ाइन स्टूडियो वाई-वॉल्स डिज़ाइन की संस्थापक, प्रेक्षा बैद; वितस्ता लाइफस्टाइल और एक्सेसरी डिज़ाइन की फाउंडर डायरेक्टर, अदिति वितस्ता धर; तथा कल्पवृक्ष डिज़ाइन की फाउंडर, अनुष्का दास शामिल हैं।

 

वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ़ डिज़ाइन के वाइस-चांसलर, डॉ. संजय गुप्ता ने डिज़ाइन के क्षेत्र में महिलाओं के लिए भारत के पहले पुरस्कारों की शुरुआत के पीछे की वजह बताते हुए कहा: “हमने रचनात्मक क्षेत्र में काम करने वाली और आगे बढ़कर योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित करने और उन्हें गौरव प्रदान करने के लिए सृजन शक्ति पुरस्कारों की शुरुआत की है, जिनकी प्रेरणादायक कहानी को दुनिया के सामने लाया जाना चाहिए। डिज़ाइन के क्षेत्र से जुड़ी इन महिलाओं ने इनोवेशन में उत्कृष्टता, बेहद प्रभावशाली लीडरशिप, विविधता और सभी को साथ लेकर चलने की काबिलियत, सामाजिक प्रभाव, लगातार अव्वल दर्जे के प्रदर्शन, विभिन्न क्षेत्रों के साथ सहयोग, मार्गदर्शन एवं पक्ष-समर्थन, संस्कृति एवं विरासत की हिफाजत, बदलाव के अनुरूप ढलने की क्षमता, या डिजाइन में टेक्नोलॉजी के इनोवेटिव तरीके से उपयोग जैसी खूबियों का प्रदर्शन किया है। सृजन शब्द का मतलब रचनात्मकता और इनोवेशन है, जबकि शक्ति ‘नारी शक्ति’ को दर्शाती है। इस तरह, सृजनशक्ति रचनात्मकता और महिला के बीच के मजबूत नाते का प्रतीक है। ज्यूरी के सदस्यों में रचनात्मक क्षेत्र के जाने-माने प्रोफेशनल शामिल थे, जिन्होंने नामांकित महिलाओं की सूची में से मूल्यांकन करने के बाद सबसे बेहतर नामांकनों को चुना। मैं सभी विजेताओं को तहे दिल से शुभकामनाएँ देता हूँ।”

 

इस अवसर पर, प्रमुख विचारकों की ओर से डिज़ाइन इंडस्ट्री में अतीत, वर्तमान और भविष्य में महिलाओं की भूमिकाओं के विषय पर एक संवाद आयोजित किया गया। पैनल के छह सदस्यों ने डिज़ाइन के काम-काज में लैंगिक आधार पर भेदभाव से जुड़ी चुनौतियों, अवसरों और जिम्मेदारियों को जानने का प्रयास किया, और इस बात पर चर्चा की कि डिज़ाइन इंडस्ट्री इस तरह की परिपाटी के बीच किस प्रकार से महिलाओं की जरूरतों को बेहतर ढंग से पूरा कर सकती है।

 

कार्यक्रम में उपस्थित वक्ताओं में अमित कृष्ण गुलाटी, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, इनक्यूबिस; संध्या रमन, संस्थापक, डेस्मैनिया डिज़ाइन; अनुराधा कुमरा, पूर्व-अध्यक्ष – अपैरल्स, फैबइंडिया ओवरसीज; एंथोनी लोपेज़, फाउंडर, लोपेज़ डिज़ाइन; लोलिता दत्ता, स्वतंत्र डिज़ाइन सलाहकार; तथा ऐश्वर्या टिपनिस, फाउंडर, ऐश्वर्या टिपनिस आर्किटेक्ट्स, शामिल थे।

 

वर्ल्ड यूनिवर्सिटी ऑफ़ डिज़ाइन के वाइस-चांसलर, डॉ. संजय गुप्ता ने कहा, “अक्सर डिज़ाइन के क्षेत्र में महिलाओं को घिसी-पिटी सोच और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उनके हुनर और उनकी काबिलियत को कमजोर करते हैं। लोग पहले से ही यह सोच लेते हैं कि महिलाएँ किस तरह के काम में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं, जिसकी वजह से महिलाओं के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं और उन्हें पहचान भी नहीं मिल पाती है। डिज़ाइन से जुड़े बिजनेस में, खास तौर पर लीडरशिप की भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है। डिज़ाइन के अलावा कई इंडस्ट्री में लैंगिक आधार पर वेतन में अंतर बना हुआ है। किसी महिला का वेतन, उसी पद पर काम करने वाले पुरुष की तुलना में कम हो सकता है। उन्हें अपने बराबर के पद पर काम करने वाले पुरुषों की तुलना में समान स्तर की मान्यता और सम्मान हासिल करने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कभी-कभी डिज़ाइन की थीम और कॉन्सेप्ट भी लैंगिक आधार पर सदियों पुरानी घिसी-पिटी सोच को मजबूती दे सकती हैं।

 

WUD ने इस मुद्दे को उठाने का फैसला किया, क्योंकि एक डिज़ाइन यूनिवर्सिटी में लैंगिक संवेदनशीलता का विषय सिर्फ लैंगिक आधार पर विविधता को स्वीकार करने से कहीं बढ़कर है। यह शिक्षण में सभी को शामिल करने वाले और सहयोगी माहौल तैयार करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें लैंगिक आधार पर भेदभाव के बिना हर व्यक्ति की विशेष जरूरतों और उनके नज़रिये को समझना, उनका सम्मान करना और सामंजस्य बिठाना शामिल है। सभी को शामिल करने की सोच को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की घिसी-पिटी परंपरा को चुनौती देना सबसे ज्यादा मायने रखता है।”

 

लोपेज़ डिज़ाइन के फाउंडर एवं चीफ क्रिएटिव डायरेक्टर, एंथनी लोपेज़ ने कहा: “डिज़ाइन के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और काम-काज के माहौल को समावेशी बनाने का विषय लैंगिक आधार पर सभी को शामिल करने से कहीं बढ़कर है। अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है, क्योंकि हम केवल सतही तौर पर काम कर रहे हैं। इन सब की शुरुआत परिवार से होती है, जहाँ हमें बचपन से ही सभी को साथ लेकर चलने की सोच को बढ़ावा देना होगा। लैंगिक आधार पर भेदभाव के बिना सभी के अरमानों को पूरा करने में मदद करके और लड़की एवं लड़कियों के लिए एक-समान नज़रिये वाले माहौल को बढ़ावा देकर, हम एक अधिक समावेशी समाज की बुनियाद रखते हैं। यहीं से समाज की नई परिपाटी सहज रूप से विकसित होगी।”

 

चर्चा को आगे बढ़ते हुए इनक्यूबिस के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, अमित कृष्ण गुलाटी ने कहा, “काम-काज के परिवेश में, खास तौर पर डिज़ाइन के क्षेत्र में सभी को बराबरी का दर्जा देना और संतुलन बनाना बेहद महत्वपूर्ण है। महिलाओं में हर किसी के लिए अनमोल सहानुभूति की भावना, हुनर, एक साथ बहुत से काम करने की काबिलियत और रचनात्मक होती है, जो डिज़ाइन के क्षेत्र के लिए आवश्यक है। लिहाजा इस तरह का माहौल तैयार करना बेहद ज़रूरी है, जो उनके हुनर को स्वीकार करने के साथ-साथ उनके प्रदर्शन में भी सहायता करे, साथ ही काम-काज के दायरे के बाहर उनके सामने आने वाली चुनौतियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। हमें पुरुषों और महिलाओं के साथ-साथ हर तबके के लोगों को बराबरी का दर्जा देते हुए सभी को साथ लेकर चलने का प्रयास करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारा पेशा उस विविध दुनिया को दर्शाता करता है, जिसमें हम रहते हैं।”

 

अनुराधा कुमरा, पूर्व-अध्यक्ष – अपैरल्स, फैबइंडिया ओवरसीज़ ने कहा: “क्रिएटिव इंडस्ट्री में सभी को साथ लेकर चलने की सोच को अपनाना बेहद जरूरी है। ‘नारी’ के साथ-साथ पुरुष व महिला के अलावा अन्य लैंगिक पहचान वाले लोगों को दुनिया के सामने लाना, सही मायने में एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में भारत के सफर को और ज्यादा प्रभावी बनाने में बेहद मददगार है।”

 

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