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सोचकर देखो

अगर मंजिल को पाना है तो सोचकर देखो,
राहों को थोड़ा सा मोड़कर तो देखो,

हाथों को थोड़ा चलाकर तो देखो,
क्या पता दिखती चीज़े कुछ अलग हो जाए।

जिंदगी के चश्मे बदल कर तो देखो,
शायद सारे यकीन तुम्हारे बदल जाए।

पत्थर को भी गौर से पलट कर देखो,
क्या पता जमीं का पत्थर भी कुछ बन जाए।

एक बार तुम दरिया में उतर कर तो देखो,
क्या पता तैरना ना सही बचना आ जाए।

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