दिल मे दबी हे कितनी बाते तुम्हें बताने को l
पर तुम तो हमे कह गई हमारी मुहब्बत छुपाने को ll
अरे वादे तो नजाने तुम यूँ ही कितने कर गई l
बस अब तो ये ग़म ही बचा है दफ़नाने को ll
मुलाकातें इतनी न थी जितनी यादे तुम छोड़ गई l
उसके सिवा तो कुछ नई बचा अब गवांने को ll
आँखों मे आंसू बोए नहीं और तुम हमे छोड़ गई l
एसी हिम्मत लाए कहा से दिल के टुकड़े उठाने को ll
तुम्हें आखरी खत लिखने की हमे वज़ह मिल गई l
लिखा था हम नहीं रहेंगे तुम पर जान लुटाने को ll
घिरेनकुमार के सुथार “घीर”