गीतम (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी) ने एक अभूतपूर्व पहल की शुरुआत करते हुए, आंध्र प्रदेश के चुनिंदा गांवों में स्थानीय अनुसूचित जनजाति (एसटी) आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए बदलाव लाने वाली मुहिम की अगवाई का बीड़ा उठाया है। इस मशहूर शैक्षणिक संस्थान ने चार (04) साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन हब (गीतम एसटीआई हब) की स्थापना करके अकादमिक अनुसंधान और सामुदायिक सेवा को एकजुट किया है। वास्तव में इस पहल का उद्देश्य एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार करना है, जो उद्यमिता को बढ़ावा देने के साथ-साथ आदिवासी युवाओं को सशक्त बनाए, ताकि उनकी जीवन-शैली में बड़े पैमाने पर सुधार लाया जा सके।
ये एसटीआई हब पडेरू और अराकू घाटी मंडलों में अपनी तरह के पहले केंद्र होंगे, जिनके लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा आर्थिक सहायता दी जाएगी, तथा इस काम को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की निगरानी के तहत पूरा किया जाएगा।
फिलहाल, तीन साल की अवधि (31-03-2026 तक) तक चलने वाली इस परियोजना के लिए लक्षित लाभार्थियों की पहचान और नामांकन के लिए क्षेत्रीय सर्वेक्षण का काम जारी है। गीतम एसटीआई द्वारा आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र (आईसीएआर-केवीके), एकीकृत जनजातीय विकास प्राधिकरण (आईटीडीए), राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), गिरीजन सहकारी निगम (जीसीसी) के अलावा कई स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी की जाएगी, और इसी वजह से इस परियोजना में कई विभाग तालमेल के साथ काम करेंगे।
गीतम स्कूल ऑफ टेक्नोलॉजी में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रधान अन्वेषक एवं सह-प्राध्यापक, डॉ. आई. शरत बाबू तथा गीतम (डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी) के साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन हब के शोधकर्ताओं की टीम को 3.65 करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ है। यह अनुदान एक परियोजना के लिए दिया गया है, जिसका उद्देश्य राजस्व सृजन मॉडल स्थापित करके आदिवासी लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना है। डॉ. बाबू अपने सह-अन्वेषकों, यानी डॉ. राजा फणी पप्पू, निदेशक, अनुसंधान एवं परामर्श विभाग, तथा डॉ. पी. मंजुश्री, प्रोफेसर, गीतम स्कूल ऑफ बिजनेस के साथ इस टीम का नेतृत्व कर रहे हैं।.
डॉ. राजा पप्पू ने इस पहल के बारे में बताते हुए कहा, “आदिवासी समुदायों ने लंबे समय से सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना किया है, जिससे उनके विकास और प्रगति में काफी रुकावट आई है। गीतम (डीम्ड टू बी) यूनिवर्सिटी ने इन समुदायों के भीतर छिपी असीमित संभावनाओं को पहचाना है, साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर और सफल बनाने के लिए आवश्यक उपकरणों, संसाधनों और जानकारी उपलब्ध कराने की पहल का नेतृत्व कर रहा है।”
बिल्कुल नई तरह की इस परियोजना के बारे में बात करते हुए, डॉ. बाबू ने कहा, “गीतम एसटीआई हब पारंपरिक तौर पर किए जाने वाले अकादमिक अनुसंधान के दायरे से परे है, क्योंकि इस परियोजना में हम आदिवासी समुदायों के साथ सीधे तौर पर जुड़ रहे हैं और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को बेहतर बना रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों के प्रोफेसर, शोधकर्ता और छात्र स्थानीय निवासियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, और इस तरह वे किताबों से मिलने वाले ज्ञान और असल जिंदगी में उसे अमल में लाने के बीच अंतर को दूर कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी ने उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए एक ऐसा माहौल तैयार किया है, जो आदिवासी लोगों की जरूरतों और उनकी उम्मीदों के अनुरूप इनोवेशन, समस्या-समाधान और कौशल विकास को बढ़ावा देता है।”
कुल मिलाकर देखा जाए, तो छोटे और कमजोर तबके के आदिवासी समुदायों की आजीविका को बेहतर बनाना और कौशल विकास में उनकी सहायता करना ही इस एसटीआई हब का उद्देश्य है। इसके लिए 2 एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) तथा 20 एसएचजी (स्वयं-सहायता समूह) के गठन के माध्यम से 1000 लाभार्थियों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है। इसका उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में पहल करते हुए मूल्य-श्रृंखला का निर्माण करना और सामाजिक उद्यमों को विकसित करना भी है। इस गतिविधि से चयनित लाभार्थियों की भौतिक एवं मानवीय पूंजी में सुधार लाने में मदद मिलेगी, साथ ही आदिवासियों के स्वास्थ्य और पोषण की दशा भी बेहतर होगी।
चार व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना की जाएगी जो साइंस फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट (सीड) डिवीजन के ढांचे के भीतर काम करेंगी। इनमें से प्रत्येक इकाई द्वारा आर्थिक उद्यमों की शुरुआत की जाएगी, जिनमें रामतिल (नाइजर सीड) तेल मिल इकाइयाँ, शहद प्रसंस्करण इकाइयाँ, सौर ऊर्जा से चलने वाली कोल्ड स्टोरेज इकाइयाँ तथा ब्रोकोली, ककड़ी, अदरक जैसी सब्जियों के लिए सब्जी प्रसंस्करण इकाइयाँ शामिल हैं।
गीतम एसटीआई हब का संचालन “हब एंड स्पोक मॉडल” के आधार पर किया जाता है। इसका मुख्य केंद्र पडेरू (जिला मुख्यालय) में होगा, जबकि पडेरू (थुम्पदा, मोडापल्ले, मिनुमुलुरु, रायगेड्डा, तलारीसिंगी और येगुमोडापुट्टू) तथा अराकू घाटी (पद्मपुरम, पप्पुदुवलसा, यंदापल्लीवलासा, चोम्पी, हट्टागुडा और लोथेरू) मंडल में चिन्हित किए गए 12 गाँव केंद्र से जुड़े स्पोक की तरह काम करेंगे। ये सभी केंद्र रामतिल (नाइजर सीड) तेल प्रसंस्करण इकाइयों, शहद प्रसंस्करण इकाइयों, सौर ऊर्जा से चलने वाली कोल्ड स्टोरेज इकाइयों, सब्जी प्रसंस्करण इकाइयों के अलावा शहद एवं रामतिल (नाइजर) तेल के लिए गुणवत्ता के आश्वासन और गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं के साथ-साथ प्रशिक्षण केंद्रों से अच्छी तरह सुसज्जित हैं।