ज़िंदा लाश सी एक लड़की चुपचाप कोने में सोई है,
खोये हुए ज़मीर से अपनी माँ के सामने देख रोई है!
तभी माँ ने देखा की बेटी की मुट्ठी में कुछ बंध है,
जकड रखा है ऐसे जैसे यही आखरी उम्मीद है!
माँ ने मुठी खोली तो वो हक्की बक्की सी रह गई,
हथेली में रखी उसकी,वो कृष्णकी मूर्ति सब कह गई!
वो बोली ए कृष्ण ये काहे की नाइंसाफी है,
द्रौपदीको भी बचाया थाना,फिर मेरी बेटी क्यों अभागी है!
जूठी तेरी शक्ति, जूठा वो काला टिका है,
जूठा हर रक्षा का बंधन हर वो रिश्ता फीका है!
लगता है जैसे इन्सानियत का हर नाता जूठा है,
हमसे किया महिलसशक्तिकरण का हर वादा जूठा है!
~ नैऋति ठाकर
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