दिल और दिमाग़
दिल और दिमाग़ कभी साथ चले है?
दिल चाहता है,
और दिमाग़ सोचता है,
इनकी कभी आपस में नहीं बनती है।
एक को लगता है सही तो दूजे को गलत,
इनकी जंगमे अपनी होती है खराब हालत।
किसे समझाएं, किसका पक्ष ले,
दोनों ही अपने अंदर बैठे हैं।
दिमाग़ की सुनो तो दिल बुरा मान जाएँ,
दिल की सुनो तो दिमाग़ ताने कसे,
उफ! कभी तो दोनों एक सी राह पर चले,
कम से कम अपनी मुश्किलें तो आसाँ करें।
पर दोनों ही ज़िद्दी, दोनों हठीले,
अपनी मर्ज़ी के मन मोज़िले,
काश इन्हें कोई समझ पाएं,
और हमारी रस्साकशी खत्म करें।
शमीम मर्चन्ट
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