Jan 5, 2021
470 Views
0 0

सब पतंगे उड़ गए

Written by

दीप
बेचारा बुझा क्या
सब पतंगे उड़ गए।

अब अँधेरे के
नगर में बातियों की अस्थियाँ
ताकती हैं जल-कलश को निज विसर्जन के लिए।
स्नेह सारा
चुक गया था मूर्तियों के सामने
प्रार्थना में तन हवन है अब समर्पण के लिए।

ज्यों
उठा हल्का धुंआ क्या!
लोग घर को मुड़ गए।

एक कोरी
पुस्तिका में पृष्ठ मिट्टी के टँके
दे गया जीवन-नियंता साँस के बाज़ार में।
जिस किसी की
उम्र दुःख की बारिशों में ही ढ़ले
वह बताओ क्या भला लिख पाएगा संसार में!

अश्रु-स्याही
से लिखा क्या!
पृष्ठ सब तुड़-मुड़ गए।

दीप हो या
व्यक्ति हो अभिव्यक्ति हो रौशन सदा
हर प्रकाशित पुंज का बुझना नियत है सृष्टि में।
स्वार्थों की
आँधियों में लौ भले मद्धिम पड़े
किन्तु जलकर पथ सजाना है सभी की दृष्टि में।

दृष्टि में
दर्शन मिला क्या!
पंथ सारे जुड़ गए।

Article Tags:
Article Categories:
Literature

Leave a Reply