मैं यू ही बहती रहती हूं
मैं कभी ठहरती नहीं
कभी कभी में कही जल्दी से गिरती
कहीं मैं शांत रहती हूं
हाँ मैं वही एक नदी हूं…..
जहाँ से में निकलती
सीधा समंदर को ही मिलती हूं
हां बीच मे मिलता पथ्थर कभी तो
उसे तोडकर वहाँ से बहती हूं
हाँ मैं वही एक नदी हूं…..
कभी कभी में रूप भी बदलती
कहीं कहीं पर बदलती में नाम
कहीं पर झरने का रुप लेती
कहीं “गंगा” बन जाता मेरा नाम
हाँ मैं वही एक नदी हूं…..
कई सारे जीवो की तरस छीपाती
कई खेतो की फसल हरी रखवाती
बारिश मै कभी रौद्र बन जाती
और बहुत तबाही भी मचाती
हाँ मैं वही एक नदी हूं…..
वैसे तो कई सारे नाम है मेरे
साथ में सैंकड़ों धाम है मेरे
खेत में हरियाली लाना
और लोगों की तरस छीपाना
यही सब काम है मेरे
हाँ मैं वही एक नदी हूं…..
बस यू ही बहना और सभी के काम में आना
यहीं बस काम है मेरे
हाँ मैं वही एक नदी हूं…..
संकेत व्यास (ईशारा)