Apr 23, 2021
450 Views
0 0

कोहरा

Written by

मैं शाम होतेहोते तुम्हें चाँद कह ही देता हूँ
नहीं तो रात तक तुम मेरे लिए
नक्षत्र हो जाओगी।
यह नयी युक्ति, नया विचार रच
फिसल कर गिरने का समय है
देवता गिर कर बदल रहे है मानव में
मानव असुरो में
असुर श्वानो में
स्त्री, देव तक तुमको सिर्फ़ देखना नहीं
स्पर्श करना चाहते है
कोहरा, एक बहाना है
रातो का विस्तार है इसमें
देवताओं की लार मिली हुई है।

अखिलेश श्रीवास्तव

Article Tags:
Article Categories:
Literature

Leave a Reply