मर रहा हूँ कि मिल के दुआ कीजिए।
मैं बशर हूँ मुझे ना ख़ुदा कीजिए।
दर्द-ए-जख़्म तो सह ही लूंगा अभी
सिर्फ़ मेरे ग़मो की दवा कीजिए।
ख़ार है सरपरस्ते-गुलो-बाग के
दुश्मने-गुल समझ ना जुदा कीजिए।
ये मनाने की तरकीब तो आ गई!
रूठ के फ़र्ज़ अपना अदा कीजिए।
कुछ निभाई है रश्मे-वफ़ा यार से,
यूँ मुझे ना सभी बे-वफ़ा कीजिए।
प्यार,नफ़रत किसीकी ज़रूरत नहीं।
अब जो कोई भी आये दफ़ा कीजिए।
डर परायों का है ही नहीं अब मुझे
बस ये अपनो का मेरे पता कीजिए।
मैं गलत,ठीक,पर साथ था ये ख़ुदा
साथ मेरे उसे भी सज़ा कीजिए।
ये ख़ुदा,ये बशर,कौन है गुनहगार ?
आज इसका सही फ़ैसला कीजिए।
वैशाली बारड
Article Tags:
वैशाली बारडArticle Categories:
Literature