देश में यौनकर्मियों की सबसे पुरानी सामूहिक संस्था दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) ने कोविड-19 की वजह से यौनकर्मियों के समक्ष उत्पन्न समस्याओं के बारे में बताने और देश में 9 लाख से अधिक महिला एवं ट्रांसजेंडर यौनकर्मियों को राहत प्रदान करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। यौनकर्मियों की दुर्दशा और संकट की स्थिति को उजागर करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे तत्काल बिना कोई पहचान पत्र की आवश्यकता के उन्हें सूखा राशन, मौद्रिक सहायता के साथ ही साथ मास्क, साबुन और सैनीटाइजर्स के रूप में सहायता उपलब्ध कराने पर विचार करें।
उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल करते हुए, जिसमें कहा गया है, “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यौनकर्मियों को भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, क्योंकि वह भी मनुष्य हैं और उनकी समस्याओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है।” कोलकाता स्थित समूह ने कहा है कि यौनकर्मियों को सामाजिक कलंक और हाशिये पर होने की वजह से कोविड-19 उपायों से बाहर रखा गया है। उन्हें तुरंत मदद की आवश्यकता है।
डीएमएससी ने पूरे देश में यौनकर्मियों के लिए काम करने वाले विभिन्न सामाजिक संगठनों और एनजीओ (अनुलग्न 1) के साथ चर्चा की है और उनसे आंकड़े जुटाए हैं। इनमें से अधिकांश संगठनों ने कोविड-19 महामारी से पहले और इसके दौरान यौनकर्मियों की स्थिति का पता लगाने के लिए अनुसंधान और सर्वेक्षण किए हैं। इस याचिका में यौन कार्य में सनलग्न महिलाओं के गठबंधन तारस द्वारा 5 राज्यों में 1,19,950 यौनकर्मियों के बीच किए गए मूल्याकंन का हवाला देते हुए कोविड-19 के दौरान महत्वपूर्ण सेवाओं तक पहुंच में समुदाय की चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है, जिसमें शामिल था:
- सामाजिक सुरक्षा सेवाओं तक पहुंच का अभाव: यौनकर्मियों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल और श्रम अधिकार नहीं हैं। 5 राज्यों में सर्वेक्षण से पता चला है कि केवल 5 प्रतिशत यौनकर्मियों को पंजीकृत श्रमिकों के लिए लेबर कार्ड के आधार पर 1000 रुपए की राशि बैंक एकाउंट में प्राप्त हुई है। तमिलनाडु को छोड़कर, जहां सीबीओ ने घरेलू कामगारों, सब्जी विक्रेताओं, फेरीवाले आदि के रूप में पंजीकरण करके यौनकर्मियों के लिए लेबर कार्डर प्राप्त करने में सफलता हासिल की है, किसी भी अन्य राज्य ने यौनकर्मियों को यह सुविधा नहीं दी है।
- आवश्यक सेवाओं का अभाव : लगभग 48 प्रतिशत सदस्यों को पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के तहत राशन नहीं मिलता है। बीमार होने की सूचना देने वाले 26,527 सदस्यों में से लगभग 97 प्रतिशत (25,699) सरकारी और प्राइवेट दोनों जगह प्राथमिक देखभाल सेवा हासिल करने में अक्षम हैं। 20 प्रतिशत सदस्यों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं और उनमें से 95 प्रतिशत (23,425) स्कूल फीस देने में सक्षम नहीं हैं। लगभग 61 प्रतिशत सदस्य किराये के मकानों में रहते हैं और इनमें से 83 प्रतिशत लोग किराया एवं बिजली बिल का भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं।
- रोजगार पर असर : लगभग 71 प्रतिशत (81,433) सदस्यों के पास अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है। जिनको कुछ आय हो रही है, उन्हें भी पिछले चार माह से दिन में तीन समय का भोजन जुटाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
डीएमएससी के आवेदन में कहा गया था कि पहचान दस्तावेजों जैसे आधार व राशन कार्ड में उनकी पहचान की कमी या गड़बड़ी की वजह से यौनकर्मियों की एक बड़ी संख्या को सहायता के दायरे से बाहर रखा गया है। यह स्थिति तब है, जब उच्चतम न्यायालय ने यौनकर्मियों के पुनर्वास और सशक्तिकरण के लिए 2011 में गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर केंद्र व राज्य सरकारों को उन्हें राशन कार्ड, वोटर पहचान पत्र उपलब्ध कराने और बैंक खाता खोलने का निर्देश दिया है।
याचिका में निम्नलिखित राहत के लिए सुझाव दिया गया था:
- कोविड-19 महामारी के जारी रहने तक, यौनकर्मियों को मासिक सूखा राशन, प्रति माह 5000 रुपए का नकद ट्रांसफर, स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए अतिरिक्त 2500 रुपए की नकद सहायता, कोविड-19 रोकथाम के लिए लक्षित हस्तक्षेप परियोजनाओं/राज्य एड्स नियंत्रण समितियों और सामाजिक संगठनों के माध्यम से आवश्यक उपकरण जैसे मास्क, साबुन, दवाएं और सैनीटाइजर्स की आपूर्ति के रूप में राहत प्रदान की जाए।
- स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय/कल्याण विभागों, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ ही साथ सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों वाली समिति के माध्यम से केंद्र व राज्य स्तर पर कोविड–।9 राहत कार्यों का प्रत्यक्ष समन्वय और निगरानी की जाए।
- राज्य के श्रम विभागों और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा बोर्ड को यौनकर्मियों का पंजीकरण करने का निर्देश दिया जाए और उन्हें असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को मिलने वाले सभी सामाजिक कल्याण लाभ प्रदान किए जाएं।
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) का अनुमान है कि देश के 17 राज्यों में 8.68 लाख महिला यौनकर्मी और 62,137 हिजड़ा/ट्रांसजेंडर लोग मौजूद हैं। इनमें से 62 प्रतिशत यौन कार्यों में संलग्न हैं। इस याचिका का उद्देश्य उन परेशानियों और चुनौतियों पर प्रकाश डालना है, जिनका सामना कोविड-19 महामारी की वजह से देश में यौनकर्मियों को करना पड़ रहा है। जनहित याचिका का उद्देश्य कोविड-19 महामारी की वजह से देश में यौनकर्मियों के सामने उत्पन्न संकट को उजागर करना था।
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अनुलग्न 1: चर्चा में शामिल सभी समुदाय–आधारित संगठन और एनजीओ के नाम
ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (दिल्ली), आस्था परिवार (मुंबई), अपना घर कल्याण संस्था (आगरा), आशा दर्पण (मुंबईi), अशोदया समिथि (मैसूर), सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्न्ई और जयपुर), एकता संगठन (वडोदरा), हमसफर ट्रस्ट (मुंबई), ज्योति महिला संघ (बेंगलुरु), क्रांति महिला संघ (शोलापुर), मृगनयनी सेवा संस्थान (रांची), सहयोग महिला मंडल (सूरत), सखी (भद्रक, ओडिशा), सशी ज्योत (अहमदाबाद), सर्वोदय समिति (अजमेर), सवेरा (कुशीनगर, उत्तर प्रदेश), स्वास्ती हेल्थ कैटालिस्ट (बेंगलुरु), स्वाथी महिला संघ (बेंगलुरु), तारस कोअलिशन ऑफ वुमन इन सेक्स वर्क और 12 राज्यों में इससे संबद्धित 107 सीबीओ एवं विजया महिला संघ (बेंगलुरु)।