ख़ामोशियों में भी कुछ शोर रहता है
और परछाइयों के पीछे
कोई आहट दिल-ओ-दिमाग़ में
दूर-दूर तक फैली है तन्हाई
फिर भी, गुज़रे वक़्त का इन्तज़ार रहता है,
कोशिशें नाकाम हज़ार बार कीं
ख़ुद को समझाने की
कोई रहनुमा नहीं जो सम्भाले हालात को।
फिर किस इन्तज़ार में
ये चन्द साँसें चल रही हैं
जज़्बातों की रोज़ ही जलती होली
फटी-नुची लाशों की रोज़ की नुमाइश
दो रोटियों में सिमटा वजूद
फिर किसमें ढूँढूँ ख़ुद की पहचान।
अनामिका तिवारी
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Anamika TiwariArticle Categories:
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