कभी सन्नाटे की आवाज सुननी हो,
तो मेरे दिल पे दस्तक देना।
कभी नफरत की आग बुजानी हो,
तो मुजे एक मिस कोल कर देना।
कभी रिश्तो की मिसाल देनी हो,
हमारी तो बिलकुल मत देना।
कभी खुबसूरती का गुरुर भारी हो,
तो अपना नकाब उतार देना।
कभी गलतफहमी दूर करनी हो,
तो आईने मे शक्ल देख लेना।
कभी सन्नाटे की आवाज सुननी हो,
तो कमबख्त मेरे दिलपे दस्तक देना।
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हर्षांग शाहArticle Categories:
Literature