ये दुनिया, ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं
किसको सुनाऊँ हाल दिल-ए-बेक़रार का
बुझता हुआ चराग़ हूँ अपने मज़ार का
ए काश ! भूल जाऊँ, मगर भूलता नहीं
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का
अपना पता मिले ना ख़बर यार की मिले
दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा प्यार की मिले
उनको ख़ुदा मिले है ख़ुदा कि जिन्हें तलाश
मुझको बस, इक झलक मेरे दिलदार की मिले
सहरा में आके भी मुझको ठिकाना ना मिला
ग़म को भुलाने का कोई बहाना ना मिला
दिल तरसे जिसमें प्यार को, क्या समझूँ उस संसार को
इक जीती बाज़ी हार के मैं ढूँढ़ूँ बिछुड़े यार को
दूर निगाहों से आँसू बहाता है कोई
कैसे ना जाऊँ मै मुझको बुलाता है कोई
या टूटे दिल को जोड़ दो, या सारे बन्धन तोड़ दो
ए परबत रस्ता दे मुझे, ए काँटों दामन छोड़ दो
फ़िल्म : हीर-राँझा-1970
कैफ़ी आज़मी
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