Dec 17, 2023
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काशी तमिल संगमम 2.0 के उद्घाटन पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

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हर हर महादेव! वणक्कम् काशी। वणक्कम् तमिलनाडु।

 

 

 

 

 

Those who are coming from Tamilnadu, I request them to use your earphones for the first time using AI Technology.

 

 

 

 

मंच पर विराजमान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, केन्द्रीय कैबिनेट के मेरे सहयोगीगण, काशी और तमिलनाडु के विद्वतजन, तमिलनाडु से मेरी काशी पधारे भाइयों एवं बहनों, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों। आप सब इतनी बड़ी संख्या में सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करके काशी आए हैं। काशी में आप सब अतिथि से ज्यादा मेरे परिवार के सदस्य के तौर पर यहां आए। मैं आप सभी का काशी-तमिल संगमम में स्वागत करता हूँ।

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

तमिलनाडु से काशी आने का मतलब है, महादेव के एक घर से उनके दूसरे घर आना! तमिलनाडु से काशी आने का मतलब है- मदुरई मीनाक्षी के यहाँ से काशी विशालाक्षी के यहाँ आना! इसीलिए, तमिलनाडु और काशीवासियों के बीच हृदय में जो प्रेम है, जो संबंध है, वो अलग भी है और अद्वितीय है। मुझे विश्वास है, काशी के लोग आप सभी की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ रहे होंगे। आप जब यहाँ से जाएंगे, तो बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद के साथ-साथ काशी का स्वाद, काशी की संस्कृति और काशी की स्मृतियाँ भी ले जाएंगे। आज यहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से टेक्नोलॉजी का नया प्रयोग भी हुआ है। ये एक नई शुरुआत हुई है और उम्मीद है इससे आप तक मेरी बात पहुंचना और आसान हुआ है।

 

 

 

 

Is it ok? The friends of Tamilnadu, is it ok? You enjoy it? So this was my first experience. In future I will use it. You will have to give me the response. Now as usual I speak in Hindi, he will help me to interpret in Tamil.

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

आज यहां से कन्याकुमारी-वाराणसी तमिल संगमम ट्रेन को हरी झंडी दिखाई गई है। मुझे थिरुकुर्रल, मणिमेकलई और कई तमिल ग्रंथों के विभिन्न भाषाओं में अनुवाद के लोकार्पण का भी सौभाग्य मिला है। एक बार काशी के विद्यार्थी रहे सुब्रमण्य भारती जी ने लिखा था- “काशी नगर पुलवर पेसुम उरैताम् कान्चियिल केट्पदर्कु ओर करुवि सेय्वोम्” वो कहना चाहते थे कि काशी में जो मंत्रोच्चार होते हैं, उन्हें तमिलनाडु के कांची शहर में सुनने की व्यवस्था हो जाए तो कितना अच्छा होता। आज सुब्रमण्य भारती जी को उनकी वो इच्छा पूरी होती नजर आ रही है। काशी-तमिल संगमम की आवाज पूरे देश में, पूरी दुनिया में जा रही है। मैं इस आयोजन के लिए सभी संबंधित मंत्रालयों को, यूपी सरकार को और तमिलनाडु के सभी नागरिकों को बधाई देता हूँ।

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

पिछले वर्ष काशी-तमिल संगमम शुरू होने के बाद से ही इस यात्रा में दिनों-दिन लाखों लोग जुड़ते जा रहे हैं। विभिन्न मठों के धर्मगुरु, स्टूडेंट्स, तमाम कलाकार, साहित्यकार, शिल्पकार, प्रॉफेशनल्स, कितने ही क्षेत्र के लोगों को इस संगमम से आपसी संवाद और संपर्क का एक प्रभावी मंच मिला है। मुझे खुशी है कि इस संगमम को सफल बनाने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और IIT मद्रास भी साथ आए हैं। IIT मद्रास ने बनारस के हजारों स्टूडेंट्स को साइन्स और मैथ्स में ऑनलाइन सपोर्ट देने के लिए विद्याशक्ति initiative शुरू किया है। एक वर्ष के भीतर हुए अनेक कार्य इस बात के प्रमाण हैं कि काशी और तमिलनाडु के रिश्ते भावनात्मक भी हैं, और रचनात्मक भी हैं।

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

‘काशी तमिल संगमम’ ऐसा ही अविरल प्रवाह है, जो ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ इस भावना को लगातार मजबूत कर रहा है। इसी सोच के साथ कुछ समय पहले काशी में ही गंगा–पुष्करालु उत्सव, यानी काशी-तेलुगू संगमम भी हुआ था। गुजरात में हमने सौराष्ट्र-तमिल संगमम का भी सफल आयोजन किया था। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के लिए हमारे राजभवनों ने भी बहुत अच्छी पहल की है। अब राजभवनों में दूसरे राज्यों के स्थापना दिवस समारोह धूमधाम से मनाए जाते हैं, दूसरे राज्यों के लोगों को बुलाकर विशेष आयोजन किए जाते हैं। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की ये भावना उस समय भी नजर आई जब हमने संसद के नए भवन में प्रवेश किया। नए संसद भवन में पवित्र सेंगोल की स्थापना की गई है। आदीनम् के संतों के मार्गदर्शन में यही सेंगोल 1947 में सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना का यही प्रवाह है, जो आज हमारे राष्ट्र की आत्मा को सींच रहा है।

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

हम भारतवासी, एक होते हुए भी बोलियों, भाषाओं, वेश-भूषा, खानपान, रहन-सहन, कितनी ही विविधता से भरे हुए हैं। भारत की ये विविधता उस आध्यात्मिक चेतना में रची बसी है, जिसके लिए तमिल में कहा गया है- ‘नीरेल्लाम् गङ्गै, निलमेल्लाम् कासी’। ये वाक्य महान पाण्डिय राजा ‘पराक्रम पाण्डियन्’ का है। इसका अर्थ है- हर जल गंगाजल है, भारत का हर भूभाग काशी है।

 

 

 

 

जब उत्तर में आक्रांताओं द्वारा हमारी आस्था के केन्द्रों पर, काशी पर आक्रमण हो रहे थे, तब राजा पराक्रम पाण्डियन् ने तेनकाशी और शिवकाशी में ये कहकर मंदिरों का निर्माण कराया कि काशी को मिटाया नहीं जा सकता। आप दुनिया की कोई भी सभ्यता देख लीजिये, विविधता में आत्मीयता का ऐसा सहज और श्रेष्ठ स्वरूप आपको शायद ही कहीं मिलेगा! अभी हाल ही में G-20 समिट के दौरान भी दुनिया भारत की इस विविधता को देखकर चकित थी।

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

दुनिया के दूसरे देशों में राष्ट्र एक राजनीतिक परिभाषा रही है, लेकिन भारत एक राष्ट्र के तौर पर आध्यात्मिक आस्थाओं से बना है। भारत को एक बनाया है आदि शंकराचार्य और रामानुजाचार्य जैसे संतों ने, जिन्होंने अपनी यात्राओं से भारत की राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया। तमिलनाडु से आदिनम संत भी सदियों से काशी जैसे शिव स्थानों की यात्रा करते रहे हैं। काशी में कुमारगुरुपरर् ने मठों-मंदिरों की स्थापना की थी। तिरूपनन्दाल आदिनम का तो यहां से इतना लगाव है कि वो आज भी अपने नाम के आगे काशी लिखते हैं। इसी तरह, तमिल आध्यात्मिक साहित्य में ‘पाडल् पेट्र थलम्’ के बारे में लिखा है कि उनके दर्शन करने वाला व्यक्ति केदार या तिरुकेदारम् से तिरुनेलवेली तक भ्रमण कर लेता है। इन यात्राओं और तीर्थयात्राओं के जरिए भारत हजारों वर्षों से एक राष्ट्र के रूप में अडिग रहा है, अमर रहा है।

 

 

 

 

मुझे खुशी है कि काशी तमिल संगमम के जरिए देश के युवाओं में अपनी इस प्राचीन परंपरा के प्रति उत्साह बढ़ा है। तमिलनाडु से बड़ी संख्या में लोग, वहां के युवा काशी आ रहे हैं। यहां से प्रयाग, अयोध्या और दूसरे तीर्थों में भी जा रहे हैं। मुझे बताया गया है कि काशी-तमिल संगमम में आने वाले लोगों को अयोध्या दर्शन की भी विशेष व्यवस्था की गई है। महादेव के साथ ही रामेश्वरम की स्थापना करने वाले भगवान राम के दर्शन का सौभाग्य अद्भुत है।

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

हमारे यहां कहा जाता है-

 

 

 

 

जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहि प्रीती॥

 

 

 

 

अर्थात्, जानने से विश्वास बढ़ता है, और विश्वास से प्रेम बढ़ता है। इसलिए, ये जरूरी है कि हम एक- सरे के बारे में, एक दूसरे की परम्पराओं के बारे में, अपनी साझी विरासत के बारे में जानें। दक्षिण और उत्तर में काशी और मदुरई का उदाहरण हमारे सामने है। दोनों महान मंदिरों के शहर हैं। दोनों महान तीर्थस्थल हैं। मदुरई, वईगई के तट पर स्थित है और काशी गंगई के तट पर! तमिल साहित्य में वईगई और गंगई, दोनों के बारे में लिखा गया है। जब हम इस विरासत को जानते हैं, तो हमें अपने रिश्तों की गहराई का भी अहसास होता है।

 

 

 

 

मेरे परिवारजनों,

 

 

 

 

मुझे विश्वास है, काशी-तमिल संगमम का ये संगम, इसी तरह हमारी विरासत को सशक्त करता रहेगा, एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना को मजबूत बनाता रहेगा। आप सभी का काशी प्रवास सुखद हो, इसी कामना के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं और साथ-साथ तमिलनाडु से आए हुए प्रसिद्ध गायक भाई श्रीराम को काशी आने पर और हम सबको भाव-विभोर करने के लिए मैं श्रीराम का हृदय से धन्‍यवाद करता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं और काशीवासी भी तमिल सिंगर श्रीराम को जिस भक्ति-भाव से सुन रहे थे, उसमें भी हमारी एकता की ताकत के दर्शन कर रहे थे। मैं फिर एक बार काशी-‍तमिल

संगमम की इस यात्रा, अविरत यात्रा को अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं !

 

 

 

 

 

 

 

Article Categories:
Art and Culture · Government · Mix

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