May 3, 2021
369 Views
0 0

कलम दौड़ी जा रही है

Written by

जनवरी का महीना है
आधी रात से ऊपर का वक्त
सन्नाटा लगा रह है गश्त
झन्न बोल रही है उसकी सीटी
इंसान जड़ हो गया है बिस्तर में
पेड़ों की पत्तियाँ भी जमकर
काठ हो गई हैं
ठंड के बिच्छुओं के अनगिनत डंकों से
सड़क हो गई है अचेत

नीली चादर पर
दुधिया झीनी मशहरी में
चाँद सोया हुआ है
गहरी नींद में

जाग रही है तो बस एक बेचैन कलम
जो लगातार भागी जा रही है
ऐम्बुलेंस की तरह
शब्दों का बजाती हुई हार्न
और चीखती हुई
क्योंकि उसे बचाना है जीवन

जब तक कलमें दौड़ रही हैं
तब तक एक-एक जान है अनमोल
भरोसा रखो उन कलमों पर
जो सोती नहींं
अभी भी कितनी आँखों में नमी है
और कितने हाथ सक्रिय हैं
किसीको सँभालने के लिए
यह सब इसलिए कि
कलमें जाग रही हैं

Article Tags:
Article Categories:
Literature

Leave a Reply