एक चाँद तुम्हारी खिड़की के आसमान पर है जो तुम्हें बेहद प्यारा लगता है जिसे […]
जनवरी का महीना है आधी रात से ऊपर का वक्त सन्नाटा लगा रह है गश्त […]
किसी तरह अस्तित्व-रक्षा में लीन ठिकाना मालूम नहीं है अपना कभी रेलगाड़ी में कभी चौराहे […]
हल्की बूँदा-बाँदी में भी लपेट ली है उसने शाल काली, मैली शाल देह पर डाले […]