लो पौ फटी वो छुप गई तारों की अंजुमन लो जाम-ए-महर से वो छलकने लगी […]
वो सर्द रात जबकि सफ़र कर रहा था मैं रंगीनियों से जर्फ़–ए–नज़र भर रहा था […]
अब तमद्दुन की हो जीत के हार मेरा माज़ी है अभी तक मेरे काँधे पर सवार […]
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