: पिछला साल अपने साथ COVID-19 महामारी और अत्यधिक प्रतिकूलता लेकर आया, जिसने देश भर में अनेक लोगों के जीवन और आजीविका को प्रभावित किया। सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होने वालों में ग्रासरूट संगठन थे, जो बचाव और राहत कार्यों में तो आगे थे, लेकिन स्वयं अपने अस्तित्व को बनाए रखना उनके लिए मुश्किल हो गया था। परिणामस्वरूप, आज उनमें से कई एनजीओस फंड की कमी और काम के अत्यधिक बोझ से जूझ रहे हैं और बंद हो जाने के कगार पर हैं, क्योंकि समुदाय की जरूरतें और कमजोरियां जटिल और गहरी होती जा रही हैं।
इस चुनौतीपूर्ण समय में, एडेलगिव ने सुधार सुनिश्चित करने के लिए साख, निपुणता और संसाधन वापस हासिल करने में सहयोग और सामूहिक प्रयास में अपना भरोसा बनाए रखा है, जो कि समय के अनुकूल और सम्पूर्ण है।
इस संदर्भ में, एडेलगिव फाउंडेशन ने ग्रासरूट, रेसिलिएन्स, ओनरशिप एंड वेलनेस (GROW) फंड का उद्घाटन किया, जो ग्रासरूट्स एनजीओस की क्षमताओं, सहनशीलता और भविष्य की तैयारी के निर्माण में सहायक होगा। ग्रो फंड मूल रूप से परिवर्तन को प्रभावी करने के एनजीओस के प्रयासों को सुगम बनाने के उद्देश्य से किया जाने वाला अपनी तरह का पहला प्रयास है। आर्थिक रूप से सहायता करने वाले कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों एवं एनजीओस और एडेलगिव फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से संचालित ग्रो फंड का लक्ष्य क्षमता निर्माण और प्रमुख संगठनात्मक कार्यों में सहायता के माध्यम से 24 महीनों में 100 उच्च प्रभाव वाले ग्रासरूट्स एनजीओस को मजबूत करना है।
लॉन्च के लिए एक मार्गदर्शक के तौर पर, 6 जुलाई, 2021 को एडेलगिव ने ग्रो (GROW) पर पहले राउन्ड टेबल सम्मेलन की मेजबानी की, जिससे अमूल्य अंतर्दृष्टि की एक श्रृंखला उभरकर सामने आई, जो ‘फंड’ के लिए हमारे विचारों और महत्वाकांक्षाओं को तैयार करने में मदद कर रही है। सम्मेलन में जनकल्याण को अधिक समावेशी बनाने और वंचित समुदायों के लिए काम करने वाले छोटे और मध्यम आकार के एनजीओस के लिए सुलभ बनाने की तात्कालिकता पर जोर दिया गया। साथ ही, विश्वास-आधारित दृष्टिकोण अपनाते हुए डेटा के आधार पर जनकल्याण करने, संधारणीयता के लिए संगठनात्मक विकास पर बल देने और दीर्घकालिक, साझेदार-नेतृत्व वाली साझेदारी और वित्त पोषण दृष्टिकोण के माध्यम से ‘डिजाइनिंग फॉर स्केल’ (पायलट से परे सोचने) की तात्कालिकता पर जोर दिया गया।
बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, मनन ट्रस्ट, रोहिणी नीलेकणी परोपकार, मैकआर्थर फाउंडेशन, ए टी ई चंद्रा फाउंडेशन और आशीष कचोलिया एडलवाइस ग्रुप के साथ इस पहल के लिए मुख्य पूंजी प्रदाताओं के रूप में शामिल हैं। संजय पुरोहित और बिखचंदानी परिवार जैसे जनकल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाने वाले प्रख्यात व्यवसायी भी इस उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं, और फंड का समर्थन कर रहे हैं। एडेलगिव आने वाले महीनों में ग्रो (GROW) में कई और व्यक्तियों और एनजीओस का स्वागत करने के लिए तत्पर है।
ग्रो फंड के लिए आवेदन अब शुरू हो गए हैं, और फंड के 100 अनुदानकर्ताओं का चयन एक खुली और पारदर्शी ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा। प्रत्येक आवेदन को वित्तीय सामर्थ्य और कोष एकत्र करने की क्षमता, अनुपालन, पहुंच, प्रभाव और कवरेज, साथ ही साथ वित्त पोषण में कमी की विकटता जैसे व्यापक मानकों पर दी गई गुणात्मक और मात्रात्मक जानकारी के आधार पर निष्पक्ष रूप से आंका जाएगा। एडेलगिव भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम क्षेत्र से समान प्रतिनिधित्वन सुनिश्चित करने के लिए कोविड एक्शन कोलेबोरेटिव (सीएसी), गूंज, जन साहस, ऑक्सफैम, एक्यूमेन अकादमी, अरथन, डिजिटल एम्पॉवरमेंट फाउंडेशन (डीईएफ), काउंसिल फॉर सोशल एंड डिजिटल डेवलपमेंट और सोशल लेंस के साथ आउटरीच पार्टनर के तौर पर काम करेगा।
“लंबी महामारी के दौरान हर ग्रासरूट संगठन के संचालन संघर्ष, भावनात्मक थकान और मानसिक स्वास्थ्य एवं महामारी के साथ आने वाली अन्य कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए ग्रो की अवधारणा की गई थी।” हमारा उद्देश्य न केवल इन एनजीओस को उनकी मूल लागत और कामकाज के लिए सहायता देना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि उनकी आवाज सुनी जाए ताकि उनकी समस्याओं का प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सके।” – विद्या शाह, एक्जि़क्यूटिव चेयरपर्सन, एडलगिव फाउंडेशन
“ग्रो फंड के माध्यम से, हम ग्रासरूट्स एनजीओस और उनके साथ काम करने वाले समुदायों में अपने विश्वास को संस्थागत बनाने का इरादा रखते हैं। इस संदर्भ में, हम मानते हैं कि वंचित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के सरोकारों और समस्याओं का उपयुक्त एवं स्थायी समाधान देने के लिए ग्रासरूट्स एनजीओस न केवल सबसे प्रभावी, बल्कि सबसे उपयुक्त स्थिति में हैं।” – नगमा मुल्ला, सीईओ, एडेलगिव फाउंडेशन
ग्रो के साथ, हम बड़े पैमाने पर समाधान डिजाइन करने और फिर हल करने की क्षमता वितरित करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। लोगों को इस संदर्भ में समाधान ढ़ूंढने में सक्षम बनाने वाली संरचनाएं – प्रौद्योगिकी आधारित संरचनाओं सहित – तैयार करने का विचार है। मेरा मानना है कि इस तरह हम, एक समाज के रूप में, समस्या सामने आ जाने पर उसका समाधान तलाशने के बजाय एक ऐसा ढांचा तैयार कर सकते हैं, जिसमें समस्याएं आएं ही नहीं, और जिसे व्यापक रूप से नियोजित किया जा सके।” – रोहिणी नीलेकणी, संस्थापक और अध्यक्ष, रोहिणी नीलेकणी फिलैन्थ्रॉपी
“सरोकारों और/ या संगठनों के लिए हस्तक्षेप की अलग-अलग योजना बनाकर व्यवस्थित रूप से मुद्दों को हल नहीं किया जा सकता। ग्रो फंड ऐसे समाधान पर जोर देता है, जो प्रणालीगत स्तर पर साझेदारी, समुदायों और संस्थानों की सहायता करने में सक्षम हों।” – अमित चंद्रा, संस्थापक, ए टी ई चंद्रा फाउंडेशन
लोक सेवाओं में मौजूद अंतराल को भरने से लेकर हमारी नीतिगत प्रतिक्रियाओं के परिणामों से निपटने और सत्ता के गलियारों में अनसुनी रह जाने वाली आवाज़ों को बुलंद करने तक, हमारे साथी नागरिकों पर इस महामारी के विनाशकारी प्रभाव को कम करने के प्रयास की जिम्मेदारी ग्रासरूट्स एनजीओस पर आ गई है। ग्रो के साथ, हमारा लक्ष्य इन ग्रासरूट्स एनजीओस के लिए सहनशीलता, निरंतरता और भविष्य की तैयारी सुनिश्चित करके उनके लिए रक्षक की भूमिका संभालना है। – इंग्रिद श्रीनाथ, निदेशक, सेंटर फॉर सोशल इम्पैक्ट एंड फिलैन्थ्रॉपी (सीएसआईपी), अशोक विश्वविद्यालय
आइए, ग्रो फंड की यात्रा का हिस्सा बनें। अनेक स्थायी संगठन बनाने की यात्रा, जो जमीन पर अपने प्रभाव को अधिकतम कर सकें और भारत में एक मजबूत नागरिक समाज को सक्षम कर सकें!
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एडेलगिव फाउंडेशन का परिचय
एडेलगिव फाउंडेशन एक अनुदान देने वाला संगठन, परोपकारी परिसंपत्ति प्रबंधन मंच और उन भारतीय व विदेशी पूंजी प्रदाताओं के लिए बढ़िया भागीदार है, जो भारतीय विकास क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ जुड़ना चाहते हैं। गैर सरकारी संगठनों को प्रारंभिक अनुदान प्रदान करके और अन्य संस्थागत और कॉर्पोरेट पूंजी प्रदाताओं से प्राप्त कोष का प्रबंधन करके हमारा अनूठा परोपकारी मॉडल एडेलगिव को अनुदान निर्माण के केंद्र में रखता है। आज, एडलगिव एक परोपकारी कोष प्रबंधक और अनुदानकर्ताओं और विश्वसनीय गैर सरकारी संगठनों के बीच सलाहकार के रूप में कार्य करता है। पिछले 13 वर्षों में, एडेलगिव फाउंडेशन ने भारत के 14 राज्यों के 111 जिलों में 150 से अधिक संगठनों की सहायता की है, जिसने इस क्षेत्र में गैर सरकारी संगठनों को लगभग 500 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धताओं को प्रभावित किया है।
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