तुम्हारा ख़त मिला,
बहुत सुंदर लिखा है पर
तुम ख़त क्यों लिखती हो हर बार???
तुमने पुछा था कभी,
और उसके जवाब में
मैं मोबाईल के दूसरे छौर से
वीडियो कॉलिंग में बस मुस्कुराई थी….
मुझे तभी भी जवाब मालूम था
और जवाब अब भी मालूम है,
पर काश तुम समझ पाते..
उफ़ !! ये long distance relationship,
हमारी भी तो यही थी ना…
कभी मिले नहीं थे हम
पर इंतजार था उसी लम्हे का,
की कभी तुम्हें कभी मिल पाऊं,
तुम्हें छूना चाहती थी अपने हाथों से,
कभी चुमना चाहती थी,
महसूस करना चाहती थी,
अपनी बाहों में भर के में तुम्हें
वही अपनापन देना चाहती थी
जिसकी तुम्हें तलाश थी,
पर दूरियां थी ना हमारे बीच..
बस इसी कारण,
लिख देती थी ख़त तुम्हें,
इसी उम्मीद से की,
तुम मेरे हर शब्द आंखो में भर के
महसूस कर सको
मेरा प्यार…
मेरी छुअन…
मेरा चुम्बन..
मेरे हर अनकहे एहसासों को
जो कभी भी
Forward msg से मैं बयां करना
नहीं चाहती थी…
इसीलिए
सिर्फ़ तुम तक पहुंच सके जो,
सिर्फ़ तुम्हारे लिए,
लिख दिया करती थी अक्सर
सारे एहसास
दिल से निचोड़ के
उंगलियों के जरिए….
और तुम पूछा करते थे की
तुम ख़त क्यों लिखती हो हर बार???

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नीता कंसाराArticle Categories:
Literature