“बहू बेटा रात को झाडू नहीं लगाते, घर पर कहीं देखा या फिर मम्मीने कुछ […]
हल्की बूँदा-बाँदी में भी लपेट ली है उसने शाल काली, मैली शाल देह पर डाले […]
कभी सुना है तुमने उस गवई स्त्री के ठहाके में दर्द का अट्टहास जिसकी हकीकत […]
संसद दाईं तरफ है 7 RCR दाईं तरफ है नीति आयोग दाईं तरफ है यहाँ […]
मैंने दुखों का समन्दर पैरों से लांघकर नहीं सर के बल चलकर पार किया है […]
मैं शाम होते–होते तुम्हें चाँद कह ही देता हूँ नहीं तो रात तक तुम मेरे […]
झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं दबा दबा सा सही दिल में प्यार […]
बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना […]
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो आँखों […]
सोचा आज भी “मर जाना है” लेकिन बेटीं हैं, घर जाना है सालों से ये […]