एक खामोशी…मर्ज़ी का मौन
या दबी हुई सिसकी?
तूफान से पहले का सन्नाटा,
या गहरी सोच से निकली हुई कविता?
एक खामोशी के पीछे,
न जाने क्या क्या निकल आता हैं।
कई राज़ दिलमें छुपे मिलते हैं,
कई तन्हाईयाँ रोती नज़र आती हैं।
किसी की खामोशी को
उनकी कमज़ोरी ना समझें
वे अल्फाज़ों के मोहताज नहीं
मौन में भी बड़े काम सुलझ सकते हैं।
आसान नहीं चुप रहना
हर किसी को बोलने की जल्दी होती है।
खामोशी से जो काम कर जाए
कीमत उसी की होती हैं।
आओ खामोशी का सबक
हम प्रकृति से सीखें
पेड़ों की जडोंने या फिर पर्बतोंने
कभी अपनी डींगे मारी है?
मुझे अपनी खामोशी बड़ी प्यारी लगती है
डूबी हुई सोच, अल्फाज़ों को खूबसूरती देती है
मसरूफियत में जो दो चार पल चुरा पाती हुँ
कलम उसी में दौड़ने लगती है।
Article Tags:
शमीम मर्चन्टArticle Categories:
Literature